Monday, January 10, 2011

यारों... जी भर के जी ले पल!

म दोस्ती-यारी की बड़ी दुहाई देते है, स्कूल से लेकर कॉलेज के दिनों तक। पर हम इस दोस्ती को कितना दुरुस्त रख पाते है? सोचने वाली बात है। स्कूल में सालों साथ पढ़ने के बाद हम 7-8 दोस्तों का ग्रुप इंदौर में कॉलेज की पढ़ाई करने गए। यहां एक ही शहर में रहते हुए भी हम कभी नहीं मिलते थे। जबकि स्कूल के समय बड़ी-बड़ी बातें करते थे कि हम मिला करेंगे, ऐसा करेंगे...वैसा करेंगे...। पर आखिरकार एक शहर में होकर भी हम पुराने ‘दोस्त’ कभी नहीं मिलते। इंदौर आने के एक-दो महिनों में ही फोन पर बात करना भी लगभग बंद हो गया। स्कूल के समय दोस्ती रहते हुए किए गए सारे वादें धरे रह गए। यहां तक कि छुट्टियों में घर पहुंचने पर भी एक-दूसरे की खैर-खबर नहीं लेते है। कभी कहीं सामना हो जाए फिर तो मिल ही लेते है।


फिर इंदौर में ग्रेजुएशन के दौरान तीन साल जिन दोस्तों के साथ बिताए अब वे दोस्त भी दिल्ली में है, और मैं भी हूं। एक ही शहर में रहते हुए हम सातों दोस्त आज सात महिनों से नहीं मिले। अब पीजी कर रहा हूं। सोच लिया हे दोस्ती मे कोई कोरे वादें और बड़ी-बड़ी बातें नहीं करूंगा न सुनुंगा। जो वर्तमान समय है उसी में दोस्ती यथासंभव ठीक से निभाउंगा। आगे क्या क्या करूंगा, क्या होगा इसके बारे में इसके कोई कोरे वादें दोस्तों से स्वीकार नहीं करूंगा। यही अच्छा रहेगा।


भई, कोरे वादें, मुगालते और बड़ी-बड़ी बातें करने से ही दोस्ती बड़ी नहीं हो जाती है। मेरे हिसाब से दोस्ती की साथर्कता और सफलता वर्तमान समय में दोस्ती को यथासंभव ठीक से निभाने में ही है। बड़ी-बड़ी बातें, कोरे वादें और दिखावे से दोस्ती का वर्तमान तो कमजोर रहता ही है और भविष्य में भी दोस्ती बने रहने की गुंजाइश खत्म हो जाती है। इसलिए यारों... जी भर के जी ले पल!





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