Sunday, November 6, 2011

IIMC HJ 10-11 LogOut भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली के हिंदी पत्रकारिता का 'लॉगआउट' के वीडियो

भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली के हिंदी पत्रकारिता का 'लॉगआउट' के ये सारे वीडियो मैंने अपने मोबाइल के कैमरे से कैद किये थे। आशा है ये हमलोग की यादों को ताजा बनाए रखेंगे। 

फैकल्टीज की बात


रोहित जोशी का गीत 1


रोहित जोशी का गीत 2



हिमांशु सिंह की कविता- 'अब याद तुम्हारी आएगी'



प्रणव का गीत- 'यारों दोस्ती भी..'



राहुल दुबे का गीत- 'हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है..'



जावेद की दुकान पर प्रधान सर के साथ एचजे की टी पार्टी 1



जावेद की दुकान पर प्रधान सर के साथ एचजे की टी पार्टी 2

जावेद की दुकान पर प्रधान सर के साथ एचजे की टी पार्टी 3



शहर में दीपावली न मना सकूंगा


 शहर में दीपावली न मना सकूंगा शहर को जाते, मां के पैर छूते हुए उन्हें कहता कि अच्छे से रहना और अपना ख्याल रखना। जबकि बतौर जवान बेटा इन बातों की जिम्मेदारी मेरी ही है। अक्सर करियर की राहें हमें अपने घर-परिवार से दूर ले जाती है। इन त्यौहार के मौसम में शहर में रहते हुए दूर अपने घर-परिवार में मनाए त्यौहारों की याद मन में बहुत कौंधती है।
दीपावली हमारे लिए महापर्व है। आज जब मैं शहर में हूं तो यहां भी दीपावली के लिए घर की सफाई हो रही है। त्यौहार का माहौल बनना शुरू हो जाता है। महानगरों से इतर छोटे कस्बों में रहने वाले मध्यमवर्गीय परिवार दीपावली के लिए अपने कच्चे-पक्के से घर की सफाई कर उसकी खूबसूरती बढ़ाने में जुट जाते हैं। ऐसे परिवारों में घर की सफाई, पुताई, सजावट से लेकर पकवान बनाने तक के सारे काम परिवार के सदस्य मिलकर करते हैं। त्यौहार की तैयारियों की पड़ोसियों से चर्चा होती है। उनमें तैयारियों को पूरा करने को लेकर एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भी होती है। ये सब होने के बाद त्यौहार
पूरे मोहल्ले में मिलकर मनाया जाता है। शहर में बात ऐसी नहीं नहीं होती है। यहां आप पड़ोसी को ठीक से जानते भी नहीं है। अपने घर में ही त्यौहार मना लेते है।
मैं शहर के एक मकान में किराए से रह रहा हूं। महीनों हुए यहां रहते लेकिन मैं नीचे की मंजिल पर रहने वाले मकान मालिक का नाम तक नहीं जानता हूं। उन्होंने भी कभी मुझसे मेरा नाम तक नहीं पूछा। आज मैंने मकान मालिक के खेलते बच्चे से उसका नाम पूछ ही लिया। उसके बाद महसूस हुआ कि मैं यहां शहर में दीपावली न मना सकूंगा। बस, जल्द ही घर जाना हो जाए और मम्मी-पापा का दीपावली की तैयारियों में हाथ बंटाऊं। ऐसे शहर में मानवीय रिश्तों की शून्यता के बीच दीपावली नहीं मना सकता। अपने कस्बे लौटकर घर पर मिट्टी के दीए में घी से दीप जलाकर दीपावली मनाउंगा। यहां शहर में मोमबत्ती जलाकर दीपावली क्या मनाना।

हलवा-केक याद आता है


(*मेरे जन्मदिवस पर विशेष!)
 मेरा जन्मदिन कई दफा दीपावली के दौरान आता है। हमारे मध्यवर्गीय परिवार में सारे सदस्य मिलकर घर की सफाई-पुताई और बाकी तैयारियां करते हैं। दीपावली से दो-तीन दिन पहले हम सब घर की पुताई में जुटे हुए थे। उस दिन मेरा जन्मदिन था और किसी को याद नहीं था। पिछले दफा भी दीपावली की तैयारियों में सभी मेरा जन्मदिन भूल गए थे। रात हो गई और किसी को मेरा जन्मदिन याद नहीं आया। मैं भी पुताई के काम में लगा रहा।
रात करीब साढ़े दस बजे क्या देखता हूं कि मेरी बड़ी बहन ने मुझे दूसरे कमरे में पुकारा। मैं पुताई का काम रोक उस कमरे में गया,तो देखता हूं कि आटे का गरम-गरम हलवे को एक प्लेट में रखकर केक का आकार दे दिया गया है। इसके बीच में एक बड़ी और मोटी से मोमबत्ती जल रही थी।
दीदी और मम्मी ने कहा कि,अरे तेरा जन्मदिन ही ऐसे समय में आता है कि हम दीपावली की तैयारियों में जन्मदिन भूल ही जाते हैं। अभी याद आया तो हमने तेरे लिए ऐसा केक बनाया। मेरा मन भर आया और आंखें नम हो गई। जुबां से थोड़े देर तक शब्द ही नहीं निकले। खुशी के आंशुओं से डबाडब आखें मैंने कहा कि पिछली बार भी आप लोग मेरा जन्मदिन भूल गए थे।
मैंने बड़ी खुशी से ‘हलवा-केक’ कांटा। उस दिन को आठ साल हो चुके हैं। मेरा आठ जन्मदिन भई आए लेकिन कभी केक कांटना नहीं हुआ। इस 14 अक्तूबर मेरा जन्म आया/आ रहा है और मुझे मम्मी और दीदी का बनाया केक बहुत याद आया/आएगा। ‘हलवा-केक’ काटे 9 साल पूरे हो जाऐंगे/गए। आज भी जब वो जन्मदिन याद आता है तो भावुक हो जाता हूं। जाने अब कब दीपावली में घर की पुताई करते हुए ‘हलवा-केक’ काटना नसीब होगा।