Saturday, December 4, 2010

आईआईएमसी आने का जुगाड़

  मैं एटीएम में था। देखा अकाउंट में पैसे नहीं आए थे। महिने का आखिरी समय था पैसों की कड़की थी। घरवालों को पैसे भेजने को कहा था पर अकाउंट में पैसे नहीं थे। एटीएम से बाहर आने पर एक व्यक्ति मेरे पास आया और कहने लगा- 'सर आपको पैनड्राइव लेना है क्या? मेरे पास 32 जीबी की नई पैनड्राइव है। आपको बाजार से बहुत कम दाम में दे दूंगा।' मेरा तो वैसे ही दिमाग का दही था। 2 दिन बाद 23 जून आईआईएमसी में एडमिशन के लिए इंटरव्यू में जाना था और पास में पैसे नहीं थे। जले पे नमक छींडकने ये पैनड्राइव बेचने आ गया है।
  इस पैनड्राइव बेचने वाले ने पुराने जख्म को भी हरा कर दिया। ये पैनड्राइव नकली तो होते ही है, काम भी नहीं करते है। खरीदने के बाद ये कचरा बन जाते है। करीब एक साल पहले एैसे ही एक ने मुझे नकली पैनड्राइव बेच कर ठग लिया था। हजार रूपए का वो पुराना जख्म हरा हो गया। और ज्यादा दिमाग खराब हो गया। मैंने इस पैनड्राइव वाले से अपना पुराना हिसाब बराबर करने का सोचा। कुछ ही देर पहले उसने एक लड़के को ठगा था। मेरे अंदर की पत्रकारिता हरकत में आई। मैंने अपने एक साथी को वहां उसके साथ छोड़ दिया और उससे कहा कि मै घर से पैसे लेकर आ रहा हूं।
अपन को थाने जाने में हिचक वगैरह तो होती नहीं है। स्कूल के समय में पत्रकारिता करते हुए पुलिस थाने ही अपने प्राइमरी न्यूज सोर्स होते थै। मैं सीधे पुलिस थाने पहुंचा। वहां के थाना प्रभारी से कहा- मैं पत्रिका न्यूज़ पेपर से हूं। वहां चौराहे पर एटीएम के पास एक व्यक्ति नकली पैनड्राइव बेच रहा है। चल कर कार्यवाही कीजिए। बिना वर्दी के दो पुलिस वालों को साथ में लेकर वहां पहुंच गया। पुलिस ने इसे रंगे हाथों पकडा। पुलिस के पूछने पर उसने कहा- 'साहब एक ही पीस था।' उसकी तलाशी लेने पर उसके पास कई पेनड्राइव बरामद हु्ई। पुलिस उसे थाने ले गई। मैंने थाना प्रभारी को कहा- सर इसे छोड़ना मत, इसकी खबर बनेगी। मैं फील्ड में अपनी रिपोर्टिंग करने चला गया।
  शाम को जब रूम पहुंचा तो याद आया थाना जाना था। थाना पहुंचा तो पुलिस उससे पूछताछ करने लगी। आरोपी ने बताया वो हरियाणा के किसी गांव से है। दिल्ली से नकली पैनड्राइव 125 रुपए में खरीद कर। सड़क पर घूमकर ग्राहकों को मनचाहे दामों पर बेच देता था...। वो मेरे सामने माफी मांगने लगा। मैंने कहा मुझसे तो माफी मांग लेगा। उससे माफी कौन मांगेगा जिसे तूने सुबह ये बेच कर ठगा है।
  मेरे दिमाग में आईआईएमसी जाने के लिए पैसों की चिंता थी ही। मैंने सोचा और कहा मैं तुझे छुड़वा देता हूं। पास में पैसे कितने है? उसने पैसे निकाले और मेरे हाथ में दे दिए। मैंने पैसे अपने जेब में रख लिए। उससे कहा- यहां तेरे कोई जान-पहचान के कोई होंगे ना, उनको फोन करके पैसे लेकर बुला ले। मैं थाना प्रभारी के पास पहुंचा और कहा- 'सर उसको छोड़ दो, रोना-गाना कर रहा है। बाहर का भी है उसे छुडवाने कौन आएगा।' थाना प्रभारी ने सिपाही को आवाज लगाई। वो सुबह के पैनड्राइव वाले को छोड़ दो।
आरोपी बाहर आ गया। उसके पिताजी वहां पहुंच गए, मैंने उनसे दो सौ रूपए लिए। थाना प्रभारी के पास धीरे से गया और उन्हें दो सौ रूपए दे दिए। थाना प्रभारी ने छुपा के ले लिए। मैंने आरोपी को समझाइस देकर जाने को कह दिया।
इस तरह मैंने आईआईएमसी आने के लिए पैसों का जुगा़ड़ किया। अगले दिन ट्रेन की टिकट कटवाई और दिल्ली पहुंच गया। मुझे नहीं लगता है मैंने कुछ गलत किया। मैंने एक ठग से हिसाब बराबर किया। मुझे एक ठग ने ठगा था, मैंने ठग को ही ठगा। इसमें गलत क्या किया। कभी-कभी हमारे कुछ काम बिना जुगाड़ के पूरे नहीं होते ना!

2 comments:

Patali-The-Village said...

एक ठग को सबक सिखाने तक तो ठीक है लेकिन......ठीक नहीं|

VJAI AMRUTKAR said...

mai nahi janata ki aapne achchha kiya ya nahi lekin aapne likha bahot achchha. kahani padhate hue mai apne aapko wakiye par paa raha tha