Friday, February 24, 2012

कवि गोपालदास 'नीरज' से रूबरू... 'तन रोगी मन भोगी मेरी आत्मा योगी रे'





राजेश गाबा . साहित्य के उज्ज्वल नक्षत्र 'नीरज' का नाम सुनते ही सामने एक ऐसा शख्स उभरता है जो स्वयं डूबकर कविताएं लिखता है और पाठक को भी डुबा देने की क्षमता रखता है।'नीरज' जब मंच पर होते हैं तब उनकी बेजोड़ कविता और लरजती आवाज श्रोता वर्ग को दीवाना बना देता है। पद्मभूषण गीतकार, कवि गोपालदास 'नीरज' जिंदादिल व्यक्तित्व के धनी। उन्होंने अपनी मर्मस्पर्शी काव्यानुभूति और सरल भाषा से हिन्दी कविता को एक नया मोड़ दिया है। हरिवंश राय बच्चन के बाद नई पीढ़ी को सर्वाधिक प्रभावित किया।

'कविता मैं नहीं लिखता वो तो भीतर से कोई लिख जाता है, गीत स्वयं शब्दों में उतर आते हैं। मैं बहुत पढ़ता हूं, मनन करता हूं। यही इस उम्र में भी मेरी तेज याददाश्त का राज है।' यह कहना है 88 वर्षीय पद्मभूषण गीतकार, कवि गोपालदास नीरज का। मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के सम्मान समारोह में शिरकत करने शहर आए 'नीरज' से सिटी भास्कर की विशेष बातचीत के अंश...

'लिखे जो खत तुझे...', 'ऐ भाई जरा देख के चलो...', 'फूलों के रंग से...', जैसे कई दिलकश गीतों के रचयिता 'नीरज' ने कहा, मुझे भी हमेशा विवादास्पद माना गया, कोई मुझे निराशावादी समझता है, कोई भोगवादी तो कोई सुरवादी। मैंने लिखा, 'हम तो इतने बदनाम हुए इस जमाने में यारों सदियां लग जाएंगी हमें भुलाने में..।' (हंसते हुए) फिर जो विवादास्पद होता है वही लोकप्रिय होता है।

मैं कवि त्रिमुखी पीड़ा का : मैं त्रिमुखी पीड़ा का कवि हूं। शरीर की पीड़ा रोगी रहने के कारण मैंने भोगी। तन रोगी रहा बचपन से। जब भूख लगती थी तो खाने के लिए पैसा नहीं था और जब पैसा हुआ तो भूख खत्म हो गई। प्रेम की पीड़ा भोगी। जिससे प्रेम किया वो मिला नहीं, वो मिले जिनसे प्रेम नहीं हो सका। तीसरे अकेलेपन के कारण अपने भीतर प्रवेश किया तो आत्मा की एकांतता का पता चला। मैंने कहा 'तन रोगी, मन भोगी मेरी आत्मा योगी रे..।' यानी त्रिमुखी पीड़ा, शरीर की पीड़ा, मानसिक पीड़ा व आत्मा की पीड़ा का कवि कहो।
लोकप्रियता भागी मेरे पीछे-पीछे

मैं ये मानता हूं कि बिना कष्ट उठाए बिना संघर्ष किए कोई भी मंजिल प्राप्त नहीं होती। बचपन में मेरे पिता की मृत्यु हो गई। तभी से मेरा संघर्ष शुरू हो गया। तभी से दूसरे के घर रहने के लिए चला गया। 10 साल वहां रहा। सो अकेलापन रहा, तो अंतर्मुखी हो गया। अंतर्मुखी होने पर एक दिन अपने आप कविता फूट गई। कविता लिखना शुरू कर दिया। मैंने गाते सुना कवि सम्मेलन में, मुझे लगा कि इससे अच्छा तो मैं गा लेता हूं। मैंने गाना शुरू कर दिया और लोकप्रिय होने लगा। लोकप्रियता तो मेरे पीछे-पीछे भागती रही। हरिवंशराय बच्चन की 'निशा निमंत्रण' पढ़कर मैंने कविता लिखनी शुरू की। उनसे ही मैंने प्रेरणा ली थी।

लिखता हूं शुद्ध कविताएं

मैं तो शुद्ध कविता लिखता हूं। शुद्ध कविता में जीवन के बहुत से आयाम आते हैं। कहीं आशा है, कहीं निराशा भी..., जीवन है तो मृत्यु भी..., कहीं जय, कहीं पराजय है, कहीं सुख है तो कहीं दुख है..। संसार का रूप ही द्वंद्वमय है। शेक्सपियर से एक बार किसी ने पूछा कि आप ट्रेजडी के साथ कॉमेडी क्यों लिखते हैं? तो उन्होंने कहा, 'आई वांट टू होल्ड मिरर अप टू दी नेचर।' इसमें ट्रेजडी भी है और कॉमेडी भी।

अर्थ जीवन का उद्देश्य नहीं

ग्लोबलाइजेशन के युग में कविताएं भी ग्लोबल हो रही हैं। इस युग में अर्थ भी जरूरी है। पर यह जीवन का माध्यम है लेकिन उद्देश्य नहीं हो सकता। अर्थ जरूरी है पर अर्थ के पीछे पागल होकर दौडऩा मूर्खता है।

एसडी बर्मन मैलोडी किंग


एसडी बर्मन के साथ मैंने काम किया था। शंकर जय किशन, रोशन, मदन मोहन से भी जुड़ा रहा। पर एसडी बर्मन साहब ने जिस तरह मेरे गीत बनाए वैसा किसी और ने किया हो, मुझे लगता नहीं। वो नए-नए प्रयोग करते थे। मैंने भी नए-नए प्रयोग किए भाषा के। मुझे अपना सबसे ज्यादा पसंद है गीत 'फूलों के रंग से, दिल की कलम से...'। इसकी विशेषता ये है कि इसमें अंतरा पहले है मुखड़ा बाद में। ये एक एक्सपेरिमेंटल गीत था। एसडी बर्मन मैलोडी किंग थे।

सहज के लिए भाषा सहज

मेरी भाषा के प्रति लोगों की शिकायत रही कि न तो वह हिंदी है और न उर्दू। उनकी यह शिकायत सही है और इसका कारण यह है कि मेरे काव्य का जो विषय 'मानव प्रेम' है उसकी भाषा भी इन दोनों में से कोई नहीं है। हृदय में प्रेम सहज ही अंकुरित होता है और वह जीवन में सहज ही हमें मिलता है। जो सहज है उसके लिए सहज भाषा ही अपेक्षित है।

'पुण्य देवता, पाप पशु प्रेम बनाता है आदमी'


हिंदी भवन में पद्मभूषण गीतकार, कवि गोपालदास 'नीरज' का सम्मान समारोह और काव्य पाठ आयोजित


सिटी रिपोर्टर . 'जो पुण्य करता है वह देवता बन जाता है, जो पाप करता है वह पशु बन जाता है और जो प्रेम करता है वो आदमी बन जाता है। वक्त से आगे देख पाने की सोच, जीवन दर्शन, गीत और कविता कहने के अंदाज, खुशमिजाज व्यक्तित्व के धनी, शब्दों के जादूगर पद्मभूषण गोपालदास नीरज ने हिंदी भवन के सभागार में बुधवार को जब यह पंक्तियां मंच से अपने खास अंदाज में पढ़ी तो समूचा सभागार हिंदी गीत, कविता के स्वर्णिम हस्ताक्षर के सम्मान में तालियों से गूंज उठा। इस कविता के माध्यम से नीरज जी ने सरल सहज शब्दों में पुरजोर तरीके से इस बात को रखा कि किसी मनुष्य के लिए किसी जीवन की परिभाषा इस बात पर निर्भर करती है कि अब तक उसने जिंदगी के किन रंगों का स्वाद चखा है। मौका था मप्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति द्वारा आयोजित गीत ऋषि नीरज के सार्वजनिक सम्मान समारोह का।

88 वर्षीय नीरज जी अपने चाहने वाले श्रोताओं से इस तरह मुखातिब हुए : 'आप सबने मेरे संबंध में बहुत सी बातें कही। कुछ कही, कुछ अनकही। किसी की ज्यादा प्रशंसा करने का मतलब होता है उसके रेट को बढ़ा देना (मुस्कुराते हुए कहा)। हमारे दीपक जी मुझे बहुत प्यार करते हैं। मैं तो बहुत साधारण आदमी हूं, फकीरों तरह रहता हूं। महान शब्द मुझे नहीं पता। आपने मुझे सम्मान दिया, इतना प्यार दिया उसके लिए आप सबका आभारी हूं।' उन्होंने आगे कहा, मैं तो समय को आत्मा मानता हूं। दर्शन के बिना कविता हो ही नहीं सकती। हम माया के फेर में पड़े रहते हैं जबकि हम सब जानते हैं कि 'श्वांस भी अपनी नहीं और तो और लाश भी अपनी नहीं।' एक कविता रचना के साथ कवि की मृत्यु हो जाती है और हर कविता के साथ उसका नया जन्म होता है। ग्लोबलाइजेशन के इस युग का देवता विज्ञान है, जिसकी मृत्यु पर विजय पाने की तैयारी है। समारोह में 'नीरज' पर केंद्रित अंतरा पत्रिका का विमोचन हुआ। साथ ही उनका सार्वजनिक सम्मान समारोह हुआ। यहां जस्टिस आरडी शुक्ला, कैलाश चंद्र पंत विशेष रूप से उपस्थित थे। समारोह का संचालन अक्षरा के संपादक नरेंद्र दीपक ने खास अंदाज में किया।

संगीतबद्ध होगा निराला-नीरज संगीत का रचनाकर्म : संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकान्त शर्मा ने कहा, रवींद्र संगीत की तरह मप्र में निराला और नीरज की रचनाएं संगीतबद्ध कराकर संरक्षित की जाएंगी। इसके लिए संगीत विश्वविद्यालय में अलग से प्रभाग खोला जाएगा। राज्य शासन द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया जाएगा। कवि ध्रुव शुक्ल ने नीरज की काव्य यात्रा की व्याख्या रोचक और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत की। संस्कृति मंत्री ने अन्तरा पत्रिका के नीरज विशेषांक और ध्रुव शुक्ल द्वारा रामभक्ति पर रचित 'राम बोला' सीडी का विमोचन भी किया।

यह सुनाया 'नीरज' ने-

'छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ लुटाने वालों, कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है'

'दोस्तों हर पल को जीयो अंतिम ही पल मान,अंतिम पल है कौन सा कौन सदा है जान'

'ज्ञानी हो फिर भी न कर दुर्जन संग निवास, सर्प-सर्प है भले ही मणि हो उसके पास'

गीतकार गोपालदास 'नीरज' का हिन्दी भवन में आयोजित कार्यक्रम में सम्मान किया गया।




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