Friday, September 3, 2010

विभाजन प्रक्रिया के उत्प्रेरक

35 रायसनिक उत्पादों के बाद भी भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की प्रक्रिया जारी है. जिसके सक्रिय उत्प्रेरकों से यह प्रक्रिया आगे भी जारी रह सकती है.
अमित पाठे पवार.
    भी ने एक जुट होकर देश को आज़ाद करवाया, तब हम भाषा के आधार पर बाटें हुए नही थे. आज़ादी के बाद भाषा के आधार पर राज्यों का गठन किया गया. इसका मूल यह था की सामान भाषा, बोली, संस्कृति व रहन-सहन वाले लोगों को मिलाकर बनाये गए राज्य भविष्य में अधिक सुगठित रहेंगे. भाषा के आधार पर राज्यों के गठन के विपरीत परिणाम भी हुए है. ऐसा पिछले कुछ सालों से ज्यादा देखने में आया है. भाषा के आधार पर राज्यों के गठन का फार्मूला देश के 'विघटनकारियों' ने ऐसे सीख लिया है, जैसे किसी छोटे बच्चे ने माचिस की तीली जलाना सीख लिया हो. जो खतरनाक है.

भाषा के आधार पर राज्यों के विभाजन के 'फार्मूले' की रायसानिक प्रक्रिया आज तक जारी है. 28 राज्य, 6 संघीय प्रदेश और एक राष्ट्रीय राजधानी. कुल 35 'रायसानिक उत्पादों' के बाद भी यह 'रायसानिक प्रक्रिया' ख़त्म नहीं हुई है. असल में इसे खत्म नहीं होने दे रहे है वे 'उत्प्रेरक' जो भाषावाद और प्रादेशिकता के नाम पर राज्यों का विभाजन करते है. इन उत्प्रेरकों द्वारा लगाई गई आग अभी महाराष्ट्र और तमिनाडु में लगी हुई है. इस आग की आंच सारे देश के लिए खतरा है.

अलग राज्य का गठन तो मानो एक परंपरा हो गई है. अभी भी तेलंगाना, अलग मध्यप्रदेश, विन्ध्याचल, विदर्भ और न जाने कौन-कौन से अलग राज्यों की मांगे उठ रही हैं. हर कोई अपनी भाषा के राज्य का अलग गठन चाह रहा है. इसकी सबसे सक्रिय आग तमिलनाडु में लगी हुई है, अलग राज्य तेलंगाना को लेकर.

दूसरी ओर महाराष्ट्र में भाषावाद और प्रादेशिकता को लेकर अलग ही 'ड्रामा' चल रहा है. यहाँ मनसे और शिवसेना के सौजन्य से चल रहा है. जैसे- उत्तरभारतीयों की पिटाई, महाराष्ट्र विधानसभा में हिंदी में शपथ लेने पर विधायक से बदसलूकी, टैक्सी ड्राइवर को लाइसेंस के लिए मराठी अनिवार्य होना आदि. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और शिवसेना राष्ट्रवादी बयां देने वालों पर खुलेआम आपत्तिजनक टिपण्णी कर उन्हें धमका रहे है. उन्हें 'देशद्रोही' कह रहे है. राजनेता, अभिनेता, खिलाड़ी, लेखक, पत्रकार या और कोई हो. इन दोनों पार्टियों ने किसी को नहीं छोड़ा है.

हमारे लोकतंत्र के संविधान से खिलवाड़ करने वाली इन पार्टियों के खिलाफ सरकार और विपक्ष को कड़े कदम उठाने चाहिये. परन्तु पार्टियाँ अपने गठबंधन और राजनितिक लाभ के कारण देश में भाषाई-विवाद और राज्यों के विभाजन की आग से अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रही है. हमें राज्यों के विभाजन की प्रक्रिया के सभी उत्प्रेरकों को निष्क्रिय कर नष्ट करना होगा. प्रादेशिकता और विभाजन के इस बबूल के पौधे को जड़ से उखाड़ फेंकना होगा, अन्यथा इसके कांटें हमारे देश को भविष्य में भी चुभते रहेंगे.

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