Friday, January 7, 2011

जिन्दगी है मॉं

डॉ. सोना सिंह, इन्दौर

दूसरे जीवन को जन्म देना एक ईश्वर की तरह है। मॉं बनना किसी भी औरत का दूसरा जन्म होता है। लेकिन इस दूसरे जन्म के बारे में कितनी महिलाएं वैसे ही सोच पाती है जैसा महान उसे माना जाता है। जन्म देने के लिए होने वाली पीड़ा और यातना सहकर भी एक तप की तरह इस कार्य के लिए खुद को तैयार करना मात्र संतति उत्पत्ति नहीं है।
कहते है कि मॉं भूखी रहकर भी बच्चे का ध्यान रखती है। वह खुद सोना भूल जाती है पर अपने बच्चे को सुलाने में अपनी रातें तमाम करती है। मॉं धरती पर भगवान का रूप है, यह सिर्फ सुना था। लेकिन मॉं होना और अपने पास मॉं का होना एक ऐसा एहसास है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है जिया जा सकता है। मेरे जीवन में मॉं का स्थान इस बात का विवरण देने की बजाय यह कहना ज्यादा सही होगा कि मेरा जीवन ही मॉं का है। यह एक ऐसा वरदार है जिसे पाना और सहेजकर रखना एक व्रत की तरह है।

आज मैं जीवन के इस सुखद पद को पा चुकी हूं तो लगता है कि मॉं होना मुश्किल है। दूसरे के जीवन को बनाना, उसे इस दुनिया में लाना और फिर उसकी सेहत के बारे में सोचना ही एक काम होता है। मॉं होना दुनिया का एक ऐसा मुश्किल काम है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। आज मदर्स डे पर मैं जबकि खुद मॉं बन चुकी हूं पर अपनी मॉं के बारे में सिवाय सोचने के और कुछ कर नहीं पा रही हूं। स्वयं मॉं बनने पर मुझे एहसास हुआ मेरी मॉं, सास, बहन, भाभी के दर्द का जो मुझे सिर्फ एक मुस्कान के रूप में ही आज तक दिखाई देता रहा है।

क्योंकि मॉं को उपहार देने से, प्यार देने से, ध्यान देने से ममत्व का कर्ज नहीं चुका सकता। इसके लिए मेरे जैसे कितने जीवन लग सकते हैं। ममत्व एक अनुभव है जो सिर्फ जीने पर किया जा सकता है। मैं मदर्स डे पर उन सभी माताओं को भी शत्-शत् प्रणाम करती हॅूं जिन्होंने अपना जीवन अपनी संतानों के लिए होम कर दिया।
(लेखिका देवी अहिल्या विवि में अध्यापिका है)

No comments: