Friday, November 12, 2010

पत्रकारिता का 'प' Journalism's 'J' ..

अमित पाठे पवार


उस दौरान मैं पत्रकारिता को 20-20 क्रिकेट की तरह खेल रहा था

  स्कूल के दिनों में अपनी हाईस्कूल की परीक्षा की तैयारी कर रहा था। उस दौरान मेरे घनिष्ठ मित्र हुआ करते थे, राजू पवार। वे उम्र में मुझसे 7-8 साल बड़े थे। वह पेशे से व्यवसायी थे और उन्होंने ‘दैनिक जागरण’ की एजेन्सी ली। परीक्षा हो जाने के बाद अब मेरे पास खाली समय था। राजू ने मुझसे कहा- ‘यार जागरण के ऑफिस से न्यूज़ के लिए फोन आते है। मुझे तो टाइम मिलता नहीं, तू जैसे हो वैसे न्यूज़ लिखकर ऑफिस भेज दिया कर।‘ इस तरह मैं दैनिक जागरण के जिला कार्यालय को न्यूज भेजने लगा और मेरी पत्रकारिता का श्री गणेश हुआ।

  ग्यारहवीं पहुंचा तो स्कूल ने अपनी फीस करीब तीन गुना बढ़ा दी। हम छात्रों को अब तक नाममात्र की फीस में पढ़ने की आदत थी, इसलिए बढ़ी हुई फीस भारी लग रही थी। उस दौरान मैं पत्रकारिता को 20-20 क्रिकेट की तरह खेल रहा था। फिर क्या स्कूल की फीस की न्यूज़ बनाई और भेज दी ‘दैनिक जागरण’ के जिला ब्यूरो ऑफिस। बाद में फोन कर के भी कह दिया- ‘मैडम मेरा नाम(बाय लाइन) भी दे देना।‘

  अगले दिन खबर हमारे पेज की फर्स्ट लीड थी वो भी बायलाइन (निज संवाददाता, अमित पाठे) के साथ। स्कूल में हमारी झांकी हो गई। सारे स्कूल वाले पहचानने लगे कि भई ये ‘पत्रकार’ है। दोस्त पूछते कि तूने ये कैसे छपवाया... आदि। चुंकि मैं 20-20 की स्टाइल में था, इसलिए कुछेक स्थानीय पत्रकार भी अब जानने लगे थे।

  एक दिन कोल इंडिया की क्षेत्रीय फुटबॉल प्रतियोगिता का फाइनल चल रहा था। मेरे घर के बगल में ही स्टेडियम है, पापा भी कोल इंडिया में है। तो मैं भी पहुंच गया। वहां नागपुर के हिन्दी अखबार ‘लोकमत’ के स्थानीय पत्रकार भी मौजूद थे। उससे मेरी थोड़ी-बहुत पहचान थी। वो मेरे दोस्त राजू की दुकान पर आता रहता था और व्यंगात्मक बातें कर राजू का मज़ाक उड़ाता था।

  मैं स्टेडियम में था और फुटबॉल मैच चल रहा था। मैने देखा लोकमत के यह पत्रकार कैमरा लिये मैच की फोटो ले रहे थे। उसे देख मुझे जलन हो रही थी। जलन से कभी-कभी आपको एक अलग ही उर्जा भी मिल जाती है। मैं कोल इंडिया के खेल प्रभारी के पास जा पहुंचा और उनसे कहा- ‘सर मैं दैनिक जागरण से हूं। मुझे इस मैच के रिजल्ट की न्यूज चाहिए।‘ उन्होंने कहा-‘बेटा पन्द्रह मिनट में मैच का रिजल्ट आ जाएगा। आप बैठो मैं खबर लिखवा देता हूं।‘ रिजल्ट आने के बाद उन्होंने अपने अस्सिटेंट से बढ़िया न्यूज लिखवा दी। हम दोनों के एक-दूसरे को धन्यवाद कहा और मैं वहां से चल दिया। मैनें कागज लिफाफे में डाला और बस से दैनिक जागरण के जिला ब्यूरो ऑफिस को भेज दिया। ऑफिस फोन कर के कह भी दिया कि खबर भिजवाई है।

  अगले दिन मैं सुबह अपने हॉकर से मिलने बसस्टेंड पहुंचा। हॉकर से कहा-‘बंडल इतने लेट क्यों आ रहे है, बांटेगा कब....।‘ मैं अपने हॉकर से बात कर ही रहा था उतने में लोकमत के पत्रकार भी वहां पहुंच गए। उनके पेपर बंडल भी वहीं आते थे। मुझे याद आया कि यार कल की न्यूज का क्या हुआ देखा ही नहीं। मैंने अपना जागरण खोला देखा मेरी कल की कोल इंडिया के फाइनल मैच की खबर हमारे जिला पेज पर थी। पांच कॉलम की एंकर न्यूज मैने अपने हॉकर भी दिखाई।

  मैंने हॉकर से कहा-‘ज़रा देख तो लोकमत में कैसी आई है।‘ देखा तो लोकमत में ये खबर कहीं नहीं थी। मुझे बङी खुशी हुई। धीरे से लोकमत के पत्रकार के पास पहुंचा और इससे कहा-‘भईया आपकी कल की न्यूज नहीं आई क्या?’ उसने कहा- ‘यार खा गए न्यूज को फोटो भी भिजवाई थी। तेरी छपी है क्या?’ मैंने कहा- हां। उन्होंने कहा- ‘तूने फोटो नहीं भिजवाई थी?’ मैने कहा- ‘भईया अपने पास कैमरा कहां है।‘ वो बोले- ‘न्यूज तो बढ़िया लगवाई है तूने।‘ मुझे बढ़ी खुशी हुई, कल ये वहां कैमरा लेकर डींग मार रहा था पर न्यूज तो आई ही नहीं। पत्रकारिता के लिए मेरा उत्साह और बढ़ गया और ये भी कि अब ये दुकान पर आकर हमारा मजाक उडाना बंद कर देगा। इस तरह पत्रकारिता का हमारा शौक आगे बढ़ता रहा।

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