Monday, November 15, 2010

स्कूल के बाद मेरी पत्रकारिता

अमित पाठे पवा
  2004 में 11 से गणित विषय तो ले लिया था पर इसके लिए मैं शायद नहीं था। दसवीं में 69.3 प्रतिशत आ गए थे। गणित में 87 अंक आ गए थे तो गणित विषय ले लिया। अपन किताबी कीड़े तो है नहीं। इस विषय में पढ़ना खूब पड़ता ही है। 2006 में 12वीं 53.3 प्रतिशत से पास कर ली। 12वीं गणित से पास करने के बाद इंजीनियरिंग करने की होड़ होती है। तो मैंने भी एमपी प्री-इंजीनियरिंग टेस्ट दे दिया।

  इंजीनियरिंग की काउंसलिंग में पहुंचा कॉलेज भी आबंटित हो गया। वहीं बैठे सोचा- तू किताबी कीड़ा तो है नहीं, 12वीं में जैसे-तैसे पास हुआ है। आगे भी रोते-रोते इंजीनियर नहीं बनना है। काउंसलिंग में नॉट इंट्रस्टेड करवा कर वापस आ गया। अब सोच लिया बी.ई. नहीं करना है। बड़ा भाई इंदौर में पढ़ रहा था। इसने वहां जेटकिंग में हार्डवेयर नेटवर्किंग में एडमिशन करवा दिया। उसमें मैंने पाया 10वीं पास भी पढ़ रहा था और 11वीं फेल भी। यहां भी नहीं पढ़ना है।
इसके बाद इंदौर में ही एनआईएफडी के मोइरा इंस्टीट्यूट में बी.एससी. मल्टीमीडिया में एडमिशन लिया। क्लासेस शुरू की तो वहां स्कैचिंग करवाई जाती थी। स्कैचिंग में मेरा हाथ काफी तंग है। हाथी बनाता हूं तो चूहा दिखता है। तो हमने मल्टीमीडिया भी छोड़ दिया। अब अक्तूबर भी बीत गया था, तो कहीं एडमिशन नहीं होता। इस दौरान हमारी पत्रकारिता चलती रही। घर में 4-5 अख़बार, रोजगार समाचार, न्यूज टुडे आती थी। घर वाले चिंतित कि यह साल बर्बाद कर रहा है। कहीं एडमिशन भी नहीं ले रहा, बस दिन भर अख़बार में घुसा रहता है। घरवालों को अख़बारों से आपत्ति होने लगी। वे अख़बार बंद करवाते और मैं चालू करवा देता। कुछ 2-3 जिला स्तर के अख़बार जान-पहचान के कारण और आने लगे। हालांकि ये फ्री आते थे।


  12वीं पास छात्र के लिए रोजगार समाचार में क्या हो सकता है। जब ये अख़बार आता 20-25 मिनट में सरसरी नजर से देख लेता था। अपने काम की एक-दो सामग्री पढ़ के खत्म। घरवाले कहते- इस पेपर में तेरे काम का क्या आता है? पढ़ना तो है नहीं तू। इस तरह घरवाले बनाम अख़बार का सिलसिला चलता रहा, और हमारी पत्रकारिता का शौक आगे बढ़ता रहा।


  कुछ महिने बाद रोजगार समाचार में देवी अहिल्या विश्वविधालय, इंदौर का एडमिशन नोटिस आया। इसमें विश्वविधालय के सारे कोर्सों का ब्यौरा था। मैंने पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला के बी,ए.(ऑनर्स) जनसंचार का कोर्स देखा। अगले दिन वेबसाइट से एप्लीकेशन फॉर्म डाउनलोड किया डी.डी. बनाई। फॉर्म पूरा कर विश्वविधालय को भेज दिया। 5-7 दिन बाद विश्वविधालय से फोन आया- आपका फॉर्म हमें आज ही प्राप्त हुआ है। गलती से रजिस्ट्रार ऑफिस पहुंच गया था। परसों 10 बजे आपकी लिखित परीक्षा है। हमने प्रवेश-पत्र कुरियर कर दिया है पर वो तो तब तक पहुंचेगा नहीं, इसलिए हमने फोन कर दिया।


  अगले दिन इंदौर जाकर लिखित परीक्षा दी। उसी दिन शाम को मेरा नाम लिखित परीक्षा में चयनित छात्रों की सूची में उपर से चौथा था। अगले दिन सुबह साक्षात्कार भी था मैंने साक्षात्कार दिया। उसी दिन शाम को साक्षात्कार में चयनित छात्रों की सूची भी आ गई। इसमें मेरा भी नाम था।


  घर फोन कर कहा- मेरा सिलेक्शन हो गया है। एडमिशन के लिए अकाउंट में पैसे जमा कर दो। उन्होंने पूछा- बेटा तू कर क्या रहा है?’ मैंने कहा- मास कम्यूनिकेशन, जनसंचार। घरवालों ने पूछा- ये बी.ई. है क्या?’ मैंने कहा- ‘नहीं, मुझे बी.ई. नहीं करना। मेरे अकाउंट में आज ही पैसे जमा कर दो एडमिशन करवा के आउंगा, तब बता दूंगा। पैसे जमा हो गए और मैंने देवी अहिल्या विश्वविधालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला के बी,ए.(ऑनर्स) जनसंचार में एडमिशन ले लिया। इस तरह हमारा पत्रकारिता का शौक आगे बढ़ता रहा।

No comments: