Tuesday, October 26, 2010

खूबसूरती दिखाने के लिए साधुवाद

संपादक के नाम पाती- अमित पाठे पवार

     नसत्ता निश्चय ही साधुवाद और आभार के काबिल है। इसने आज भी अपनी सादगी की खूबसूरती को बनाए रखा है। जबकि दूसरी ओर इस दौर में अखबार अंधे विकास के पथ पर भन्नाटा खा रहे हैं। जनसत्ता ने आज भी असल 70 प्रतिशत भारत को स्वयं से जोडे रखा है। यह अखबार आज भी गांव और निचले वगों के करीब नजर आता है। कुम्हार का दीयें बनाने से लेकर मूतिकार, बुनकर, लोहार के काम करने से लेकर खेती-बाड़ी जैसी तमाम फोटों जनसत्ता में अक्सर दिखाई देती रहती हैं।

    ऐसी फोटों भारत की असली तस्वीर का एक बडा हिस्सा हैं। इसे जनसंचार माध्यमों में स्थान देना आवश्यक है। हमारी मुख्यधारा की मीडिया को भारत की तस्वीर की ओर झांकना चाहिए। परन्तु हमारा मीडिया भारत की बड़ी तस्वीर को छोड़ इंडिया के टुकड़े को ही नापता रहता है। निचले वगॅ के बुनियादी फोटों और कवरेज हमारे आज के मीडिया से गायब होते जा रहे हैं। इस तरह भारत और इंडिया के बीच की बढ़ती खाई के लिए हमारा मीडिया भी जिम्मेदार है।

   जनसत्ता के 25 अक्तूबर के अंक में नांव पर नदी पार कर मतदान को जाते ग्रामीण (पेज-1) और मिट्टी के दीप गढ़ते कुम्हार का फोटो (पेज-9), साथ ही पेज-7 के अन्य फोटों को प्राथमिकता देकर प्रकाशित करना प्रशंसनीय हैं। भारत की मीडिया से इतर हमारी मुख्यधारा की मीडिया महेन्द्रसिंह धोनी और उनकी पत्नी के समुद्र में अटखेलियां करने को इस देश की तस्वीर मानता है (दैनिक भास्कर, 25 अक्तूबर, पेज-1)। जबकि ऐसी तस्वीरें देश की अधूरी तस्वीरें है, भारत की नहीं।

   जनसत्ता की इसी खूबसूरती का मैं कायल हूं। इसलिए तीन साल पहले इंदौर में रहते हुए भी मैं इस रोज लेता था। वहां मुझे एक दिन बाद और 1 रूपए महंगा मिलता था, पर खूबसूरती के लिए ये सब लाज़मी लगता था।

3 comments:

Patali-The-Village said...

सही लिखा है|

राम त्यागी said...

hopefully you are right :)

हिन्दी ब्लॉग्गिंग में स्वागत है !!

Unknown said...

मित्र आप और आपकी तरह से अनेक साथी ब्लॉग पर लिख रहे हैं। किसी ने किसी स्तर पर इसका समाज पर असर होता है। जिससे देश की ताकत और मानवता को मजबूती मिलती है, लेकिन भ्रष्टाचार का काला नाग सब कुछ चट कर जाता है। क्या इसके खिलाफ एकजुट होने की जरूरत नहीं है? भ्रष्टाचार से केवल सीधे तौर पर आहत लोग ही परेशान हों ऐसा नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार वो सांप है जो उसे पालने वालों को भी नहीं पहचानता। भ्र्रष्टाचार रूपी काला नाग कब किसको डस ले, इसका कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता! भ्रष्टाचार हर एक व्यक्ति के जीवन के लिये खतरा है। अत: हर व्यक्ति को इसे आज नहीं तो कल रोकने के लिये आगे आना ही होगा, तो फिर इसकी शुरुआत आज ही क्यों न की जाये?

इसी दिशा में कुछ सुझाव एवं समाधान सुझाने के छोटे से प्रयास के रूप में-

"रुक सकता है 90 फीसदी भ्रष्टाचार!"

आलेख निम्न ब्लॉग्स पर पढा जा सकता है?

http://baasvoice.blogspot.com/2010/11/90.html

http://presspalika.blogspot.com/2010/11/90.html

http://presspalika.mywebdunia.com/2010/11/17/90_1289972520000.html
Yours.
Dr. Purushottam Meena 'Nirankush
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