Monday, October 25, 2010

समय से छहः साल आगे मेरी घड़ी


अमित पाठे पवार

मैं स्कूल में 10वीं में पढ़ाई कर रहा था। एक दिन मेरे पापाजी ने मुझसे कहा- 'बेटा अच्छे से पढाई करना है, फस्टॅ डिवीजन लाना है। फर्स्ट डिवीजन से पास होगा तो तुझे मैं घङी खरीद कर दूंगा।' मैनें परीक्षा दी और 69 प्रतिशत लेकर फस्टॅ डिवीजन से पास हो गया। समय बीतते 11वीं और 12वीं भी पास हो गया। कभी न मैनें पापा को घङी के लिए कहा, न पापा को याद आई। हालांकि मुझे अच्छी तरह याद रहा कि पापा ने मुझे घङी देने का वादा किया था।

मैं कॉलेज पहुंच गया और मेरा ग्रेजुएशन भी पूरा हो गया। इस दौरान मैनें कुछेक बार घङी देने के वादे की याद पापाजी को दिलाई भी थी। ग्रेजुएशन के बाद अब पीजी डिप्लोमा करने दिल्ली भी पहुंच गया। मैं सितंबर में रक्षाबंधन की छुट्टी में घर गया था। पापा ने मुझसे कहा- 'बेटा चल बैंक जाना है और ये अलामॅ घङी भी खराब हो गई है, सुधरवा के लाते है।' हम घङीवाले की दुकान पहुंचे। दुकानदार को घङी दी और वो सुधारने लगा। मैनें दुकान में रखी हाथघङियां देखी और पापा से कहा- 'पापा, मेरी 10वीं पास की घङी तो दे दीजिये। आप देते ही रह गए। पापा ने हंसते हुए कहा- 'अरे हाँ, तेरी घङी तो रह ही गई।' मैंने कहा- 'हां, दसवी पास होने पर देना था। अब तो 12वीं पास हो गया, ग्रेजुएशन भी हो गया। अब पीजी चल रहा है, घङी कब देंगे।' वे बोले- 'हां यार तू आज ले ही ले घङी।' पापा ने दुकानदार से कहा- 'भाईजान इसे इसकी पसंद की घङी दे दो। दसवीं पास की घङी देना बाकी है। अब तो इसकी नौकरी लग जाने का समय आ रहा है। नहीं तो अब ये मुझे ही घङी खरीद के दे देगा।' मैंने ठीक वैसी ही घङी पसंद की जैसी मेरे पापा पहनते है। सादी, वाटरप्रुफ और सस्ती 450 रूपए की।

थोडी देर में अलार्म घङी भी सुधर गई और मेरी नई घङी मेरी कलाई पर आ गई। पापा ने अपना पर्स निकाला और दुकानदार से पूछा- 'भाईजान कितने पैसे हुए।' पापा ने पर्स देखा और कहा- 'अरे भाईजान पसॅ में पैसे भी नहीं है, ये ढाई सौ रूपए है ले लो बाकी बाद में देता हूं। हम बैंक ही जा रहे थे, यहां आना हुआ तो बच्चे ने मौका देख के चौका मार लिया। इसने अपनी पैंडिंग घङी भी ले ली।' दुकानदार ने कहा- 'ठीक है ना पाठे जी बाद में आते-जाते पैसे दे दीजिएगा। अच्छा हुआ वरना बच्चा आपको ही घङी दे देता।'


ऐसे मेरी 10वीं पास की घङी मुझे वादे के छहः साल बाद मिली। इस तरह ये घङी मुझे मिलने के वादे के समय से छहः साल आगे थी। घङी मिलने पर बहुत खुशी हुई। बडे गवॅ और उत्साह से कलाई पर बांधा और घङी मम्मी को दिखाया। अब बडे शौक से इसे अपनी कलाई पर बांधता हूं। ब्लॉग

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