Saturday, July 2, 2011

बहरहाल, आल इज वेल!

आज 'राजस्थान पत्रिका' जयपुर संस्करण के 'जस्ट जयपुर' में मेरा कार्टून कॉलम 'जस्टtoon' प्रकाशित हुआ है।
बहुत खुश हूं। आज अखबारी व्यंग्यचित्रकार भी हो गए।

बहरहाल इसके लिए समय के लिहाज से आशुतोष दिवेदी, दिलिप मंडल, इस्माइल लहरी, जयदीप कर्णिक, पुष्पेश पुष्प, महेंद्र प्रताप सिंह, अरविंद कुमार सेन, रवि, जितेंद्र राज चावला, संजीव माथुर और माणक लाल शर्मा आदि के मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूं। आप लोगों के साथ इन सीढ़ियों का अंदाजा लगा।

जी करता है, कमसकम एक कोर खिलाकर आपका लोगों का मुंह मीठा कर दूं। लेकिन, पत्रकारी पेशे की यह नौकरी उपरोक्त लोगों की तरह साथ नहीं देती। मूही, फिलहाल साढ़े छह हजार के आस-पास तक की ही है।



आर्थिक सौजन्यों और आभारों खर्चापानी निपटा रहे है। एक टाइम का खाकर अगले के लिए आर्थिक इंतजाम करते है। वैसे इस 7 को 'गुजारा भत्ता' मिलेगा, तकरीबन 62-64 सौ रुपए। इसमें 2380 रुपए को कर्जा जो 7 तारीख तक और बढ़ जाएगा, के सहित सात से आठ हजार का अनिवार्य खर्च वहन करना है।

गोयाकि यह पत्रकारिता है और अपन इसके इसी धरातल पर है।

बीती रात एक पांच सितारा हॉटल 'मेरियेट' की इनॉग्रेशन डिनर पार्टी में रिर्पोटिंग करने गया था। लौटकर '27 रुपए में फुल धमाल' कर डिनर के रूप में अन्नपूर्णा माता के दर्शन किए। एक प्याउ से पीने का पानी, मांगी हुई एक बॉटल में भरकर रूम पर ले गया। एक आईआईएमसीयन दोस्त रात रूम पर मिलन आ गया था तो किराए की बाइक में पेट्रोल और डिनर खरीद पाया।

आज डिनर के लिए एक मित्र के साथ जुगाड़ की जुगत की थी, पर बात नहीं बनी। बहरहाल अभी लंच करने के लिए 10 रुपए के चार 'कागज' है और कुछ गोलाकार धातुएं भी है। लेकिन डिनर के लिए जुगाड़ तो करना ही है। ब्रेकफास्ट तो पिछले ढ़ेड-दो सालों में लगभग भूला-बिसरा सा शब्द हो गया है।

इन्हीं खुशियों और राहों के बीच जिंदगी (रेडियो वाले इरफान सर इसे ज़िन्दगी पढ़े) बढ़िया चल रही है।

इन खुशियों को माता-पिता, भगवान और 'प्रेमिका' को भी समर्पित करता हूं। 'प्रेमिका' जिसे उसकी शादी होने के बाद से देखे कुछ बरस हो गए है। बस माता रानी की कृपा है। आल इज वेल!

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