Monday, September 6, 2010

मीडिया-मंत्रा Media mantra लो भैया..


[यह व्यंग मैंने अपने कॉलेज (एस.जे.एम.सी., दे.अ. वि.वि., इंदौर) के वार्षिक-उत्सव 'मीडिया-मंत्रा 2009' पर उस समय ही लिखा था. जिसे मैं अब अपने ब्लॉग पर लिखकर अपने उन सहपाठियों तक पहुचाना चाहता हूं. वे इसे आसानी से  खुद को जोड़ और समझ पाएंगे भी पाएंगे.]
अमित पाठे पवार.
    हाँ आओ मीडिया-मंत्रा है. मीटिंग में आओ.. मीडिया-मंत्रा है. कमेटी बनाओ.. मीडिया-मंत्रा है. परफोर्म करो.. मीडिया-मंत्रा है.

हर साल मार्च-अप्रेल में मेरे कॉलेज में यह 'मंत्र' बहुत सुनने में आता है कि- मीडिया-मंत्रा है. मीडिया-मंत्रा हमारे कॉलेज का वार्षिक-उत्सव का नाम है. लडकियों कि तरह होने वाले 'नखरों' के बाद आखिर तो यह होता ही है. डेट आगे पीछे होते-होते... दो-तीन दिन पर आकर जम ही जाती है.

अब मीडिया-मंत्रा के 'मंत्र' के लिए यजमान कौन बनेगा? पंडित कौन होगा? इस अनुष्ठान आयोजन कौन-कौन से और कैसे होंगे. भंडारे में भोजन क्या होगा? ...और 'मीडिया-मंत्रा' के विसर्जन पर डी.जे. होगा या नहीं...? ऐसे कई मंत्र भी मीडिया-मंत्रा के साथ उच्चारित होंगे ही.

लो भईया मीडिया-मंत्रा है.
आइये गणेश जी का ध्यान करें... ॐ मीटिंग से शुरुवात करते हुए पहली आहुति डालते है. पहले ये बताओ की भाई! मूसल से किसकी दोस्ती हो गई है? 'कोर्डीनेटर' कौन बन गया है! बन गए हो तो लो अब झेलो..!

मीटिंग - "देखिये, एच.ओ.डी. सर से हमने बात की है. उन्होंने इस डेट के पहले सब कुछ पूरा कर लेने को कहा है. ऑडिटोरियम इस-इस डेट को खाली है." लो! कोर्डीनेटर जी, गणेशजी का ध्यान करने से पूर्व ही त्रुटी! सब मिल कर मीडिया-मंत्रा का यजमान तो चुन लेते. कौन श्रेष्ट और वरिष्ट है. और ये ऑडिटोरियम वालो की डेट्स से क्या!? मीडिया-मंत्रा के लिए कर्मठ ज्योतिषियों से विचार कर महूर्त तो निकलना चाहिये था.

चलो छोड़ो, भागते भूत की लंगोट ही सही...! ॐ मीटिंग को आगे बढाओ...

मीटिंग - "देखिये आप एक-एक कर के अपनी ऑपीनियन दीजिये..., अरे! पहले एक को तो बोलने दीजिये. उसकी पूरी बात तो सुन लो...! नहीं, एच.ओ.डी. सर ने इसकी परमिसन नहीं देंगे. उन्होंने हमे पहले ही गाइड-लाइन दे दी है. हमें कुछ अलग करना चाहिये यह तो पहले भी हुआ था." यजमान- "उफ़! तो क्या अब यहाँ स्वयंवर करवा दे क्या?! कहाँ कोर्डीनेटर बनकर फंस गए है..."

अब मीटिंग के बाद मीडिया-मंत्रा में एक-दो फेरबदल हो जाएगा, बाकी रहेगा तो हर साल जैसा ही.
परन्तु यजमान मंत्र उच्चारण (एंकरिंग) तो मैं ही करूँगा. नहीं मै अच्छी एंकरिंग करती हूँ. झगड़ा नहीं! इसके लिए राज-ज्योतिषी (फैकेल्टी) ऑडिसन लेकर निर्णय लेंगे.

अरे यार...! मै भी कहाँ इसमें उलझ रहा हूँ! दो साल मीडिया-मंत्रा में आहुति डाल कर मैंने अपना 'पुण्य' तो कमा लिया है न! अब इन 'नए' लोगों की बारी है. अपन तो अब सन्यास लो. चूँकि सत्यनारायण कथा के अंत में हुई त्रुटी की क्षमा मांग लो तो भगवान त्रुटियाँ भूल कर खुश हो जाते है. परन्तु मेरे कॉलेज का मीडिया-मंत्रा  महान अनुष्ठान है. इसमें हुई त्रुटियों को यहाँ के लोग कभी नहीं भूलते है. मुझे अभी तक  मूसल की याद दिला देते है.

छोड़ो ये सब! अपन तो प्रसाद और भंडारा-भोजन खाकर ही बचा हुआ पुण्य भी पा लेंगे. मीडिया-मंत्रा कथा का प्रथम अध्याय यहीं समाप्त होता है.

पर याद रहे श्रद्धालुओं 'प्रयोग' (हमारा हॉउस-जर्नल) पुराण में मीडिया-मंत्रा के बारे में नवम अध्याय में वर्णित है कि मीडिया-मंत्रा में केवल प्रसादी और भंडारा-भोजन करके ही इस अनुष्ठान के सारे पुण्य प्राप्त किए जा सकते है. तो मीडिया-मंत्रा के लिए जैसे भी कर्म करो पर भंडारे का भोजन जरूर खाना. क्या पता कोई चमत्कार हो जाए और मीडिया-मंत्रा विसर्जन पर डी.जे. पर नाचने का परम आनंद प्राप्त हो जाए.

                                         ll ॐ मीडियामन्त्राय नम: ll

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