Monday, August 9, 2010

मेरी स्कूली कॉलेज-क्लास

फीचर


स्कूल क्लास से कॉलेज-क्लास में कितना अंतर होता है. इनमे एक समानता होती है, यहाँ जाने पर अच्छा नही लगता और न जाने पर बुरा.

स्कूल-क्लास से कॉलेज-क्लास में आकर बैठने पर कितना कुछ बदल जाता है. ये दोनों ही समय यादगार होते है, पर स्कूल क्लास के लम्हों की बात ही कुछ और हुआ करती थी. मुझे याद है जब हमने स्कूल को वास्तव में अपना 'मिनी-कॉलेज' स्वयं ही बना लिया था. कॉलेज के सारे मज़े तो स्कूल क्लास में ही ले लिए थे. इसलिए अब कॉलेज में कुछ अलग सा नही लगता था. कॉलेज-क्लास पर मानो स्कूल-क्लास ने अतिक्रमण कर लिया है.

यहाँ कॉलेज-क्लास में यूनिफ़ॉर्म में नहीं है, पर स्कूल के विपरीत अब रोज़ बैग लेकर जाते है. क्लास में अनुशासन से बैठते है, वरना हमारे 'मिनी-कॉलेज' में तो.... क्या बताए. टीचर आगे के दरवाजे से अन्दर आते थे, और हम पीछे के दरवाजे से बाहर जाते थे. अब तो फैकल्टी के आने का इंतजार करते रहते है. अब एक दिन गैरहाजिर होना अखरता है, पर स्कूल में ख़ुशी होती थी.

स्कूल के इन्टरनल (त्रिमासिक और अर्ध- वार्षिक परीक्षा) में पास होने कोई इच्छा नहीं रहती थी. अब कॉलेज के एग्जाम के पहले की रात नोट्स छानते बीतती है. अफ़सोस! मेरे स्कूल में लड़कियां नहीं थी. इसलिए घर से निकलते और क्लास में जाने से पहले खुद पर ध्यान देने की कोई जरूरत नहीं होती थी. टयूसन-क्लास जाने पर उलट हुआ करता था. घर से निकलने और क्लास में जाने से पहले खुद पर पूरा-पूरा ध्यान देते थे. आखिर यहाँ वो सब भी साथ पढ़ा करती थी.

कॉलेज-क्लास में आकर बुद्धू हो गए है, स्कूल में ज्यादा समझदार थे. रोज़ लड़ते और बात करने लग जाते. अब कॉलेज-क्लास में एक बार लड़ते है फिर कभी बात नहीं करते है. कॉलेज में कपड़ो की तरह हम भी अलग-अलग हो गए है. स्कूल में हम और नजरिये सब यूनिफ़ॉर्म में थे. स्कूल-क्लास में सिर्फ दोस्त साथ बैठते थे. कॉलेज में प्रेमी-प्रेमिका बनकर साथ बैठते है. स्कूल में टीचर की पैरेंट्स की तरह सुना करते थे. अब तो टीचर भी पैरेंट्स की तरह हो गए है, अब उनकी कैसे सुन सकते है भला!

कॉलेज-क्लास में आकर टेलीफोन, मोबाइल, ऑरकुट, फेसबुक, ट्विटर और न जाने क्या-क्या.. सब कुछ है. स्कूल के समय ये सब न था. इसके बावजूद दोस्तों में आपसी कनेक्शन था. कभी भी कहीं भी बात हो जाती थी. क्लास में मैसेज पास करते थे. इन्टरनेट और वाई-फाई के बिना क्लास-मेट्स में सोसल-नेटवर्किंग थी. अब सब कुछ हो कर भी 'वो सब' नहीं है. दोनों क्लास में समानता सिर्फ एक ही है- दोनों में जाते रहना अच्छा नही लगता और बाद में न जाने पर बुरा.

4 comments:

mayank singh said...

mere apne purane din yaad aa gaye...

Unknown said...

very true yaar....

केशव कुमार said...

achchha........!!!!!!!!!!
aapke din v suhane the.
shukriya yad lautane ke liye mere bhai.

VJAI AMRUTKAR said...

bahot khub dost, woh ajib din the