जयप्रकाश चौकसे |
गर्मी और उमस भरा मुंबई का दिन था. हम देवी अहिल्या विश्वविधालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्यनशाला के स्टुडेंट यहाँ पहुंचे हुए थे. हम हम सभी बी. ए. (ऑनर) जनसंचार फ़ाइनल ईयर के स्टुडेंट एजूकेशनल ट्रिप पर यहाँ पहुचे थे. हम यहाँ मुंबई और पुणे के विभिन्न मीडिया व शिक्षा संस्थानों और फिल्म-स्टूडियो के भ्रमण हेतु यहाँ गए थे. यहाँ की एजूकेशनल विजिट के लिए सीनियर फिल्म पत्रकार और कॉलमिस्ट जयप्रकाश चौकसे का विशेष सहयोग रहा. श्री चौकसे हमारी सीनियर फैकल्टी श्रीराम ताम्रकार के पुराने घनिष्ट मित्र है. चौकसे जी ने मुंबई में अपने संपर्कों से हमें सहयोग किया. मुंबई से वापसी के समय हमने उनसे मिलकर धन्यवाद कहकर आभार प्रदर्शन करना चाहा. यह अप्रत्याशित था, इसकी सलाह हमारे साथ गये फैकल्टी श्री आनंद पहारिया ने दी. हमने फ़ौरन सर की बात मान ली. सर ने तुरंत चौकसे जी के मोबाइल की घंटी घनघना दी.
चौकसे जी ने फ़ोन पर कहा 'अरे इसकी क्या जरूरत है, मैंने कोई बड़ा काम थोड़े किया है.' हमारे आनंद सर ने उनसे कहा की बच्चें आपसे मिलने और मार्गदर्शन के भी इच्छुक है. चौकसे जी ने कहा 'हाँ तो जरूर मिलिए पर मैं अभी अपने घर पर नही हूँ. अभी सलमान के फ्लैट पर हूँ, आप यहीं आ जाइये.' हुम पुणे के लिए निकल रहे थे. हमने बस घुमाई और सलमान खान के फ्लैट को मोड़ दी.
हम पूरी क्लास के 34 क्लासमेट्स और दो फैकल्टी एक साथ थे. चौकसे जी सलमान के फर्स्ट फ्लोर स्थित फ्लैट से नीचे आये. उन्होंने कहा चलो वहां समुद्र के किनारे बातें करते है. उनसे काफी बातें हुई. वे काफी बोल्ड व्यक्ति है. खड़ी बातें करते है. मुम्बईया में बोले तो बिंदास!
उन्होंने निजी और प्रोफेशन दे जुड़ी ढेरों बातें की. वे बोले 'अच्छा लिखने के लिए खूब पढ़ना बहुत जरूरी है. मै आज भी रोज दिन में छः से आठ घंटे पढता हूँ. शायद इसलिए मेरी दोनों आँखों का ऑपरेशन हो चुका है. मेरी आँखों में 18 साल के जवान का लेंस है.' हँसते हुए बोले- 'तो लड़कियों मुझसे बचकर रहना. देखो बच्चों लिखना तो मेरा शौक है, मैं पैसों के लिए थोड़े लिखता हूँ. लिखने से मुझे जितने पैसे मिलते है उससे ज्यादा तो मै अपने ड्रायवर को देता हूँ.' उन्होंने अपने हाल ही के कुछ कॉलम की चर्चा भी की. साथ ही हमारी फैकल्टी श्रीराम ताम्रकार के बारे में भी बातें की.
चौकसे जी ने बताया बताया मै भी मूलतः इन्दौरी हूँ. वहां मैंने अपने घर में एक काफी बड़ी निजी लाइब्रेरी बना रखी है. अब जब इंदौर आऊंगा तो लाइब्रेरी पर और ज्यादा ध्यान दूंगा. तुम्हारे विश्वविधालय जरूर आऊंगा. ' हम में से एक कोमल सी आवाज आई- 'सर सलमान.....'. चौकसे जी ने कहा 'मुझे लग ही रहा था कोई लड़की अब ये कहेगी.' 'आज सलमान की पेशी है, वो कोर्ट गया है. वो होता तो बोल देता पर वो तो कल ही आएगा. मै तो उसके अब्बाजान से मिलने आया था.'
मैंने पूछा सर आपके कॉलम में आपकी फोटो अचानक क्यों बदल दी गई? पहले बहुत पुरानी फोटो थी अब अचानक बदल दी गई है. हम तो पुरानी फोटो के अनुसार ही आपको इमेजिन करते थे. वे हँसे और बोले 'ये अखबार वाले न जाने कहाँ-कहाँ से फोटो ले लेते है. मै तो न खिंचवाता हूँ, न ही देता हूँ. उनको कहीं से फोटो मिल गई होगी तो नई फोटो देने लगे.'
जयप्रकाश चौकसे जी डाउन-टू-अर्थ और बोल्ड व्यक्तित्व के है. उन्होंने हमे एक सबसे बड़ा गुरुमंत्र दिया की "अच्छा लिखने के लिए खूब पढ़ना जरूरी है." इससे मुझे ये यह तो पता चल गया की उस 'परदे के पीछे' किताबें है. गोयाकि गर्मी तो थी पर समुद्र के किनारे की लहरों की ठंडी हवा के साथ चौकसे जी की बातें अद्धभुत और यादगार थी. परदे के पीछे के लेखक को जानने का मौका मिला.
चौकसे जी से चर्चा में काफी समय गुजर गया पता ही नही चला. वे बोले- 'अरे बच्चों तुम्हे पुणे पहुँचने में रात हो जाएगी, बस में बैठों. तुम्हे फ्यूचर के लिए ऑल द बेस्ट, फिर मिलेंगे....
-अमित पाठे पवार, आईआईएमसी (amitpathe@gmail.com)
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